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रविवार, जनवरी 29, 2012

"चुनाव लड़ना आम आदमी के बस की बात है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

चुनाव लड़ना क्या आम आदमी के बस की बात है?
मेरे विचार से तो बिल्कुल नहीं! 
   क्योंकि वार्ड मेम्बर से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक के चुनाव में धन का जिस प्रकार से खुला खेल होता है उसे दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतन्त्र का ईमानदार व्यक्ति झेल ही नहीं सकता। कारण यह है कि आम आदमी के पास इतना धन चुनाव के लिए होता ही नहीं है।
    साफ-सुथरे और निष्पक्ष चुनाव होने का दावा निर्वाचन आयोग करता तो है मगर उसमें मेरे विचार से एक प्रतिशत सच्चाई भी नहीं है। यद्यपि निर्वाचन आयोग ने अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करते हुए अब काफी कठोर कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। मगर इन नियम-कानूनों की धज्जियाँ भी प्रत्याशियों द्वारा खुले आम उड़ाई जाती ही हैं।
    आज विधान सभा के चुनाव के लिए एक प्रत्याशी द्वारा खर्च की अधिकतम धनराशि ग्यारह लाख तय की हुई है। लेकिन मैंने देखा है कि यहाँ धनवान और बाहूबली प्रत्याशियों द्वारा इससे कई गुना धन खर्च किया जाता है वहीं निर्धन और ईमानदार प्रत्याशी अपना घर-मकान और जमीन तक भी गिरवी रख कर और ग्यारह लाख खर्च करके भी चुनाव नहीं जीत पाता है।
    सुना तो यह है कि मान्यता प्राप्त राष्ट्रीयदल अपने प्रत्याशी को ग्यारह लाख नकद धनराशि तो देती ही हैं इसके अलावा इससे कई गुना खर्च वो विज्ञापनों और चुनाव प्रचार सामग्री में ही चुनाव की भेंट चढ़ा देती हैं। इसके साथ-साथ सत्ताधारी दल की सहायता परदे के पीछे से उद्योगपति भी करते ही हैं।
    आम आदमी किसी भी राजनीतिक दल की प्राथमिक सदस्यता इसीलिए ग्रहण करता है कि किसी दिन उसकी भी बारी आयेगी और वो भी चुनाव लड़कर सदन में जायेगा। मगर देखा यह गया है कि हर बार मान्यताप्राप्त राजनीतिक दल अपने पुराने दिग्गजों को ही चुनाव मैदान में उतारते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि एक व्यक्ति को केवल एक बार ही चुनाव लड़ने का मौका दिया जाना चाहिए। इससे न तो वंशवाद का ठप्पा किसी दल पर लगेगा और न ही भ्रष्ट लोग शासन में आयेंगे।
    आज हमारे जाने-माने सन्त और सामाजिकता का झण्डा लहराने वाले सामाजिक लोग कभी लोकपाल की बात करते हैं और कभी विदेशों में काले धन को वापिस लाने की बात करते हैं।
    मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि वो यह आवाज क्यों नहीं उठाते कि एक व्यक्ति को केवल एक बार ही चुनाव लड़ने दिया जाए।
    माना कि बड़ी दिक्कतें आयेगी जो यह होंगी कि नये चेहरों को सदन चलाने का प्रशिक्षण कौन देगा? लेकिन इसके लिए भी उपाय है कि दस प्रतिशत साफ-सुथरी छवि के ईमानदार और कानूनविद् लोगों को मनोनीत किया जाए जो नये विधायकों और सांसदों को प्रशिक्षित करें।
    चुनाव कराना सरकार का काम है और इस काम को अंजाम देता है निर्वाचन आयोग!
     अतः निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वह निर्धारित तिथि को प्रत्याशियों के  नामांकन कराते ही उनसे चुनाव प्रचार के लिए आवश्यक धनराशि जमा करा ले। इसके बाद इन प्रत्याशियों को अपने अधीन करके चुनाव सम्पन्न होने तक देश या विदेश के ऐसे भाग में भेज दिया जाए जहाँ से यह लोग मतदाताओं के सम्पर्क में विल्कुल भी न रहें।
     आयोग द्वारा इनके द्वारा जमा की गई धनराशि से समानरूप से स्वयं प्रचार कराया जाए। क्योंकि आज भारत की जनता साक्षर है। उसे अपने विवेक से वोट करने की सुविधा दी जानी चाहिए।
     इसके बाद जो व्यक्ति सरकार की सदन में आयेंगे वो वास्तव में जनता के प्रतिनिधि होंगे। फिर न तो प्रत्याशी के 11 लाख खर्च होंगे और नही कोई फर्जी हिसाब बनाने को बाध्य होना पड़ेगा। आज जाहे कितनी भी मँहगाई की मार हो लेकिन मैं समझता हूँ कि दो लाख रुपयों में चुनाव आयोग प्रत्याशी के चुनाव को अपने सरकारी स्तर से सम्पन्न करा सकता है।
     आशान्वित हूँ कि कभी ऐसा समय भी अवश्य आयेगा ही।

कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामन न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
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मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।